भारत एक विकासशील देश है जहाँ जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीबी, कुपोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझता है। ऐसी स्थितियों में तपेदिक (टीबी) जैसी गंभीर बीमारियाँ आम लोगों के लिए और भी खतरनाक हो जाती हैं। तपेदिक से पीड़ित मरीजों को लम्बे समय तक दवा लेनी होती है और इस दौरान उन्हें उचित पोषण की आवश्यकता होती है। इसी आवश्यकता को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2018 में निक्षय पोषण योजना (Nikshay Poshan Yojana) की शुरुआत की। यह योजना तपेदिक मरीजों को पोषण सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
निक्षय पोषण योजना उद्देश्य:
निक्षय पोषण योजना (Nikshay Poshan Yojana) का मुख्य उद्देश्य तपेदिक रोगियों को उपचार के दौरान आवश्यक पोषण सहायता प्रदान करना है ताकि वे शीघ्र स्वस्थ हो सकें और बीमारी के दुष्परिणामों से बच सकें। कई बार देखा गया है कि कुपोषण की वजह से टीबी की बीमारी गंभीर रूप ले लेती है और दवाओं का असर भी कम हो जाता है। इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer – DBT) के माध्यम से वित्तीय सहायता दी जाती है ताकि वे पोषक आहार खरीद सकें।
योजना की शुरुआत और कार्यान्वयन:
इस योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 1 अप्रैल 2018 को की गई थी। इसका संचालन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत किया जाता है और यह राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) का हिस्सा है। योजना के अंतर्गत सभी टीबी मरीजों — चाहे वे सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे हों या निजी डॉक्टरों से — को प्रति माह ₹500 की सहायता राशि दी जाती है। यह राशि रोगी के आधार और बैंक खाते से जुड़ी जानकारी के आधार पर सीधे खाते में भेजी जाती है।
लाभार्थी कौन हैं:
निक्षय पोषण योजना (Nikshay Poshan Yojana) के लाभार्थी वे सभी व्यक्ति हैं जिन्हें तपेदिक रोग से ग्रसित पाया गया है। इसमें सभी प्रकार के टीबी मरीज शामिल हैं — वयस्क, बच्चे, महिलाएं, पुरुष, HIV-संक्रमित टीबी मरीज, MDR-TB (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी) के मरीज आदि। यह सहायता राशि इलाज की पूरी अवधि तक मिलती है, जो सामान्यतः 6 महीने से लेकर 24 महीने तक हो सकती है, रोग की गंभीरता के अनुसार।
निक्षय पोषण योजना की विशेषताएं:
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): लाभार्थियों को सीधा बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर किया जाता है।
- पोषण पर ध्यान: टीबी जैसे रोग में पोषण की अत्यधिक आवश्यकता होती है, जिसे यह योजना पूरा करने का प्रयास करती है।
- सभी के लिए उपलब्ध: सरकारी और निजी चिकित्सा संस्थानों दोनों से इलाज करवा रहे मरीजों को यह लाभ मिलता है।
- आधार और बैंक खाता अनिवार्य: लाभार्थी को योजना का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड और बैंक खाता अनिवार्य है।
- NIC के माध्यम से निगरानी: योजना के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए NIC द्वारा डिजिटलीकृत प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाता है।
योजना का प्रभाव:
इस योजना के लागू होने से टीबी मरीजों को न केवल पोषण सहायता मिली है, बल्कि इसके चलते इलाज की निरंतरता और उपचार पूरा करने की दर में भी वृद्धि हुई है। पहले मरीज आर्थिक तंगी के कारण इलाज अधूरा छोड़ देते थे, जिससे बीमारी दोबारा हो जाती थी और संक्रमण फैलता था। अब उन्हें पोषण के लिए आर्थिक सहायता मिलने से वे अधिक अनुशासित तरीके से उपचार लेते हैं।
इसके अलावा इस योजना ने टीबी के खिलाफ सामाजिक जागरूकता भी बढ़ाई है। अब लोग पहले की तुलना में अधिक जागरूक होकर समय पर जांच और इलाज के लिए आगे आते हैं। इससे टीबी उन्मूलन के राष्ट्रीय लक्ष्य — “2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाना” — को प्राप्त करने में मदद मिल रही है।
चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता:
हालांकि यह योजना बहुत उपयोगी साबित हुई है, फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- कई बार आधार और बैंक खाता लिंक न होने के कारण लाभार्थियों को भुगतान नहीं मिल पाता।
- दूरदराज़ क्षेत्रों में डिजिटल व्यवस्था की कमी से लाभार्थियों को योजना की जानकारी ही नहीं होती।
- कुछ राज्य सरकारें इस योजना के क्रियान्वयन में ढिलाई बरतती हैं जिससे लाभार्थी वंचित रह जाते हैं।
इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, योजना के प्रचार-प्रसार, डेटा अपडेशन और कार्यान्वयन में पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
निक्षय पोषण योजना (Nikshay Poshan Yojana) भारत सरकार की एक सराहनीय पहल है, जो न केवल तपेदिक जैसी गंभीर बीमारी से लड़ने में मदद करती है, बल्कि देश के गरीब और कमजोर वर्ग को पोषण सुरक्षा भी प्रदान करती है। यदि इस योजना को सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह भारत को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकती है। आवश्यकता है कि सभी नागरिक, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और सरकार मिलकर इसे सफल बनाएं।
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